क्या आप जानते हैं कि भारतीय छाछ सेहत के लिए कितनी फायदेमंद है।Do you know how much beneficial indian buttermilk is for health.
शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसको छाछ प्रिय नहीं है और जब मौसम गर्मी का हो तो इसकी उपयोगिता कई गुणा बढ़ जाती है यह एक उत्तम पेय पदार्थ तो है ही साथ में दुसरे व्यंजन(recipe) जैसे कढ़ी व अनेक प्रकार के रायते भी इससे बनाए जाते हैं किसी आचार्य ने तो यहां तक भी कहा है "तक्रस्य देवम दुर्लभं" अर्थात तक्र(छाछ) देवताओं को भी दुर्लभ है ऐसा इसके महत्व को समझाने के लिए कहा गया होगा संस्कृत में इसे तक्र तथा हिन्दी में छाछ, मट्ठा और लस्सी कहते हैं तथा हरियाणा में सीत पंजाब में लस्सी और राजस्थान में छा बोलते हैं यह मुख्यत दो प्रकार की होती है
(1)देशी छाछ इसे गांव की छाछ भी कहते हैं गांव में दूध की बहुतायत होती है एक बड़े मिट्टी के बर्तन में दूध डालकर गोबर से बने उपलों की आंच पर छ सात घंटे तक गर्म किया जाता है उपलों का प्रयोग इसलिए किया है कि उपलों की आंच स्थिर (constant heat)होती है जिससे दूध उफनता नहीं रात को इस दूध को दुसरे मिट्टी के बर्तन में डाल कर उसमें थोड़ी सी बचा के रखी गई छाछ मिला देते हैं और अच्छी तरह ढक कर रख देते हैं और रात भर रखा रहने देते हैं ताकि दूध दही में बदल सके इस को दूध जमाना(fermentation process of milk) कहते हैं सुबह उसमें ओर पानी डाल कर मथनी (दही मथने की मशीन) से मथ कर मक्खन को अलग कर लिया जाता है इस प्रकार से तैयार की गई छाछ हल्की व उत्तम होती है।
(2)दुसरे प्रकार की छाछ:--इसे शहरी छाछ भी कहते हैं इसके लिए दूध को रात को जमाने से पहले ही गर्म किया जाता है और सुबह मथने के बाद मक्खन को अलग नहीं किया जाता इस प्रकार से तैयार की गई छाछ कुछ पोष्टिक तो होती है परन्तु भारी व कफकारक होती है।
गुणों के आधार पर गाय की छाछ सबसे उत्तम मानी गई है
छाछ के विशेष गुण:-- आयुवर्द्धक है तथा सफेद दाग (leucoderma)की बीमारी को होने से रोकती है और बवासीर ,पथरी, पेशाब की रुकावट,पिलीया, लिवर की सोजन, तिल्ली बढ़ना, कब्ज, संंग्रहणी आदि रोगों को दूर करने में अत्यंत गुणकारी है और हमारी पाचन क्रिया को ठीक रखती है ।
छाछ के विशेष गुण:-- आयुवर्द्धक है तथा सफेद दाग (leucoderma)की बीमारी को होने से रोकती है और बवासीर ,पथरी, पेशाब की रुकावट,पिलीया, लिवर की सोजन, तिल्ली बढ़ना, कब्ज, संंग्रहणी आदि रोगों को दूर करने में अत्यंत गुणकारी है और हमारी पाचन क्रिया को ठीक रखती है ।
शरीर की प्रकृति के अनुसार छाछ की सेवन विधिः जिनकी वात प्रकृति है उनको छाछ सैैंधा नमक मिलाकर पीनी चाहिए तथा पित प्रकृति वालों को खांंड मिलाकर सेवन करनी चाहिए और जिनकी कफ प्रकृति है उन्हें सम भाग सोंठ कालीमिर्च और पीपली का चूर्ण तैयार करके रख लेना चाहिए अब इसमें से एक दो चुटकी चूर्ण तथा थोड़ा सेंधा नमक छाछ में मिलाकर सेवन करना चाहिए और जिनको पेट में गैस अधिक बनती है तथा बवासीर है उन्हें भुने हुए जीरे के साथ छाछ का सेवन करना चाहिए।
छाछ कब नहीं लेनी चाहिए:-- इसके लिए एक कहावत है "सावन भादों कुत्ता नै बाकी पूतां नै"सावन और भादवा यह दोनों मास वर्षा ऋतु में आते हैं इन दोनों महीनों में पुरवा हवा चलती है जिससे छाछ अधिक अम्लीय हो जाती है अतः इन दोनों महिनों में छाछ फायदा नहीं करती।
आचार्य चरक, आचार्य भाव मिश्र तथा आचार्य वाग्भट्ट ने छाछ को औषध माना है
आचार्य चरक के अनुसार छाछ के गुण
शोफार्शोग्रहणीदोषमूत्रग्रहोदरारुचौ । स्नेहे्व्यापदि पाण्डुत्ववे तक्रं दद्दाद् गरेषु च ।।
आचार्य भाव मिश्र के अनुसार छाछ के गुण
आचार्य भाव मिश्र ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ भावप्रकाश निघंटू में तक्र सेवन करने के विषय में लिखा है:--शीतकाल में तथा अग्नि की मंदता,वात रोग, अरुचि तथा नाड़ियों के अवरोध में तक्र अमृत के समान है गुणकारी होता है। और यह गर (संयोजक विष),वमन,प्रसेक (कफजन्य लार),विषमज्वर, पांडू रोग, मेद रोग, ग्रहणी, अर्श,मूत्रग्रह (मूत्र का बंध होना), भगंदर, प्रमेह, गुल्म, अतिसार,शूल (यहां इसका अर्थ पेट दर्द है), प्लीहा,उदर रोग, अरुचि, श्वित्र (स्वेत कुष्ठ), कोष्ठगत रोग, कुष्ठ,शोथ, तृषा तथा कृमि रोग को नष्ट करने वाला होता है।
आचार्य वागभट्ट के अनुसार तक्र के गुण:--"तक्रं लघु कषायाम्लं दीपनं कफवाताजित् ।
आचार्य चरक के अनुसार छाछ के गुण
शोफार्शोग्रहणीदोषमूत्रग्रहोदरारुचौ । स्नेहे्व्यापदि पाण्डुत्ववे तक्रं दद्दाद् गरेषु च ।।
अर्थ :--तक्र (छाछ) के गुण :--शोथ, अर्श,ग्रहणीविकार,मूत्रकृछ,उदर रोग, अरुचि, स्नेहपान के कारण उत्पन्न रोग में, पांडू रोग और विषविकार में इसका सेवन करना चाहिए। इसको थोड़ा विस्तार से समझाते हैं
शोथ यानी सोजन शोथ रोग दो प्रकार का होता है एक निज तथा दुसरा आगंतुक निज शोध शरीर के अंदर की खराबी से होता है जैसे गुर्दे की खराबी तथा यकृत (लिवर) की तथा आगंतुक शोथ बाहर से चोट आदि लगने से होता है छाछ का प्रयोग निज शोथ में ही करना चाहिए आगंतुक में नहीं
अर्श यानी बवाशिर रोग,ग्रहणीविकार इसको संग्रहणी भी कहते हैं यह काफी कष्टप्रद रोग है इसमें रोगी को बार-बर मल त्याग करना पड़ता है अंग्रेजी में इसे irritable bowel syndrome कहते हैं,उदर रोग यानी पेट से संबंधित रोग जैसे गैस, कब्ज,अफारा आदि, अरुचि यानी कि खाने-पीने की इच्छा ना होना, स्नेहपान पंचकर्म चिकित्सा के अंतर्गत पिलाए जाने वाले द्रव घी तेल आदि को स्नेहपान कहते हैं यदि स्नेहपान उचित मात्रा में न दिया जाए या जो स्नेहपान के योग्य नहीं हैं उनको दे दिया जाए तो इससे अन्य कई प्रकार के रोग हो जाते हैं, पांडू पीलिया रोग को कहते हैं, विषविकार यानी कि शरीर में जहर (toxic) की मात्रा बढ़ जाना ऐसा गलत औषध (जो शास्त्रोक्त विधि से तैयार ना की गई हों)और गलत खानपान से होता है।
आचार्य भाव मिश्र के अनुसार छाछ के गुण
आचार्य भाव मिश्र ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ भावप्रकाश निघंटू में तक्र सेवन करने के विषय में लिखा है:--शीतकाल में तथा अग्नि की मंदता,वात रोग, अरुचि तथा नाड़ियों के अवरोध में तक्र अमृत के समान है गुणकारी होता है। और यह गर (संयोजक विष),वमन,प्रसेक (कफजन्य लार),विषमज्वर, पांडू रोग, मेद रोग, ग्रहणी, अर्श,मूत्रग्रह (मूत्र का बंध होना), भगंदर, प्रमेह, गुल्म, अतिसार,शूल (यहां इसका अर्थ पेट दर्द है), प्लीहा,उदर रोग, अरुचि, श्वित्र (स्वेत कुष्ठ), कोष्ठगत रोग, कुष्ठ,शोथ, तृषा तथा कृमि रोग को नष्ट करने वाला होता है।
आचार्य वागभट्ट के अनुसार तक्र के गुण:--"तक्रं लघु कषायाम्लं दीपनं कफवाताजित् ।
शोफोदरार्शोग्रहणीदोषमूत्रग्रहारूची: ।
प्लीहगुल्मघृतव्यापदग्रपाण्ड्वामयान् ज्येत्।।"
अर्थ:--तक्र हल्का, कषाय, और अम्ल रस युक्त,दीपन, और कफ तथा वात नाशक है यह सूजन, उदर रोग, अर्ष ,ग्रहणी रोग,मुत्रकृच्छ (मूत्र में रुकावट), अरुचि,प्लीहा, गुल्म (गांठ),घृत (घी)का अजीर्ण यानी घी से होने वाली बदहजमी और कृत्रिम विषविकार (विरोधी पदार्थो के सेवन से बनने वाला विष जैसे मछली के उपर दूध का सेवन)।
क्या अब भी आप भारतीय छाछ (Indian buttermilk)पीना नहीं चाहेंगें
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