"हाथ जोड़ विनती करूं।
मैं बालक नादान।।
भूल चूक थोड़ी घणी।
माफ करो भगवान।।
शरणागत हूं नतमस्तक हूं।
दया करो कृपा निधान।।"
क्या आपको पता है कि हम अपने आराध्य देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जो पूजा प्रार्थना करते हैं वह तब तक स्वीकार नहीं होती जब तक हम क्षमा प्रार्थना नहीं करते!
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का आना स्वाभाविक है और हर कोई इन समस्याओं का तुरंत समाधान चाहता है किंतु परिस्थितिवश इनका समाधान नहीं हो पाता तो हम हमारे आराध्य देवी देवताओं की शरण में जाते हैं!
हम में से हर कोई अपने अपने तरीके से भगवान या
अपने आराध्य देवी देवताओं की पूजा प्रार्थना करते हैं
इसकी एक ही विधि है क्षमा प्रार्थना। क्षमा प्रार्थना क्या है? मनुष्य जीवन में गलतियांं होती रहती हैं इन गलतियों से हमाारे अंदर बुरे संस्कार जमा होते रहते हैं इसके लिए हमें भगवान से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए।
नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता।।
विभीषण भगवान राम से कहते हैं हे नाथ मैं दश मुख वाले रावण का भाई हूं , हे देवताओं की रक्षा करने वाले प्रभु श्री राम मेरा जन्म भी राक्षस कुल में हुआ है तथा मेरा तामसी शरीर है और स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय है जैसे उल्लू को अंधकार पर सहज ही स्नेह होता है
दोहा:--श्रवन सुजसु सुनि आयउंं प्रभु भंजन भव भीर।
विभीषण कहते हैं हे प्रभु मैं कानों से आपका यश सुन कर आया हूं कि आप भव के भय का नाश करने वाले हैं हे दुखियों के दुख दूर करने वाले और शरणागत को
और हर कोई इस आशा के साथ प्रार्थना करता है की हमारी प्रार्थना अवश्य स्वीकार हो किंतु क्या ऐसा हो पाता है।हमारी प्रार्थना क्यों स्वीकार नहीं होती प्रार्थना में कुछ तो कमी रहती ही होगी जिससे वह हमारे इष्ट देव को स्वीकार्य नहीं होती इसको जानने के लिए हमें प्रार्थना के सही ढंग को जानना होगा। प्रार्थना का सही स्वरूप इस बात पर निर्भर करता है कि आप का भाव कैसा है क्योंकि भगवान भाव के वश में हैं हमारी प्रार्थना में स्वार्थ भाव की उपस्थिति रहती है तथा शरणागत भाव की अनुपस्थिति रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने किष्किंधा कांड में लिखा है।
सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।। हम स्वार्थ के वश में होकर भगवान के सामने प्रस्तुत होते हैं और उनसे कुछ न कुछ मांगते हैं धन-संपत्ति के लिए लक्ष्मी जी की प्रार्थना करते हैं तथा कार्य में बाधा ना आए इसके लिए गणेश जी को याद करते हैं भूत प्रेत आदि प्रबल संकट को हटाने के लिए हनुमान जी की प्रार्थना करते हैं भगवान हमेशा यह चाहते हैं की भगत मेरे पास आए और अपनी बात सही ढंग से रखे ताकि मै उसकी समस्याओं का समाधान कर सकूं। अब यह बात आती है की हमारी सभी समस्याओं का हल कैसे हो ।
इसके लिए आपको स्वार्थ के भाव का सर्वथा त्याग करना होगा तथा शरणागत के भाव को प्रबल करना होगा इसको करने के लिए क्या करना चाहिए
इसकी एक ही विधि है क्षमा प्रार्थना। क्षमा प्रार्थना क्या है? मनुष्य जीवन में गलतियांं होती रहती हैं इन गलतियों से हमाारे अंदर बुरे संस्कार जमा होते रहते हैं इसके लिए हमें भगवान से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए।
इसके लिए हमारे हिंदू धर्म के सर्वमान्य ग्रंथ दुर्गा सप्तशती मैं दी गई क्षमा प्रार्थना पढ़ सकते हैं
जो भी इस प्रकार है:-- परमेश्वरी मेरे द्वारा रात दिन हजारों अपराध होते रहते हैं मुझे आपका दास समझकर मेरे उन अपराधों को कृपा पूर्वक क्षमा करो। हे परमेश्वरी मैं आवाहन नहीं जानता विसर्जन करना नहीं जानता और पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता मुझे क्षमा करो।हे देवी सुरेश्वरी मैंने जो मंत्रहीन क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो जाए ।सैकड़ों अपराध करके भी तुम्हारी शरण में जाकर जो जगदंबे कहकर पुकारता है उसे वह गति प्राप्त होती है।जो ब्रह्मादि देवी देवताओं के लिए भी सुलभ नहीं है ,हे जगदंबे मैं अपराधी हूं किंतु तुम्हारी शरण में आया हूं इस समय में दया का पात्र हूं तुम जैसा चाहो करो। हे देवी परमेश्वरी अज्ञान से भूल से अथवा बुद्धि भ्रमित होने के कारण मैंने जो कम या अधिक गलतियां की हो वह सब क्षमा करो और मुझ पर प्रसन्न हो जाओ। हे सच्चिदानंद स्वरुपिणी जगत माता कामेश्वरी तुम प्रेम पूर्वक मेरी पूजा स्वीकार करो और मुझ पर हमेशा प्रसन्न रहो। हे देवी सुरेश्वरी तुम गुप्त से भी गुप्त वस्तु की रक्षा करने वाली हो मेरे निवेदन किए हुए इस जप को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो।
लंकापति रावण जब अपने भाई विभीषण को निकाल दिया था तब विभीषण भगवान रामचंद्र जी की शरण में आए थे। विभीषण ने भगवान राम से जो कहा गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरितमानस के सुंदरकांड के अंतर्गत ऐसा कहा है।
नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता।।
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा।।
विभीषण भगवान राम से कहते हैं हे नाथ मैं दश मुख वाले रावण का भाई हूं , हे देवताओं की रक्षा करने वाले प्रभु श्री राम मेरा जन्म भी राक्षस कुल में हुआ है तथा मेरा तामसी शरीर है और स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय है जैसे उल्लू को अंधकार पर सहज ही स्नेह होता है
दोहा:--श्रवन सुजसु सुनि आयउंं प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर।।
विभीषण कहते हैं हे प्रभु मैं कानों से आपका यश सुन कर आया हूं कि आप भव के भय का नाश करने वाले हैं हे दुखियों के दुख दूर करने वाले और शरणागत को
सुख देने वाले श्री रघुवीर मेरी रक्षा कीजिए।
श्री रामचंद्र जी विभीषण को कहते हैं।
सुनहु सखा निज कहउं सुभाऊ।जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ।।
जो नर होइ चराचर द्रोही।आवै सभय सरन तकि मोही।।
तजि मद मोह कपट छल नाना।करउं सद्द तेहि साधु समाना।।
प्रभु श्री राम कहते हैं हे सखा सुनो मैं तुम्हें अपना स्वभाव बताता हूं जिसे काक भुसुंडि जी शिवजी और पार्वती जी भी जानती हैं कोई भी मनुष्य चाहे संपूर्ण जगत का द्रोही हो यदि वह भी भयभीत होकर मेरी शरण में आ जाए और मद,मोह तथा अनेक प्रकार के छल कपट त्याग दें तो मैं उसे शीघ्र ही साधु के समान बना देता हूं ।
यदि हम रात्रि को सोते समय दिन भर जाने अनजाने में कोई गलती हुई हो तो उसके लिए भगवान से क्षमा प्रार्थना (prayer for forgiveness)करें तो यह हमारे मन को निर्मल व स्वच्छ कर देगी।
Ati sundar prarthna bhav. Maiya ko shat shat naman🙏🌹🙏🌹
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा हैं सर कृपया अध्यात्मक के विषय में ऐसी जनकारी से भरे ब्लॉग लिखकर ज्ञानदान का कार्य करते रहे कोटि कोटि नमन 🎉🎉💐💐🌹🌹🌹🙏🙏🙏
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