Skip to main content

पूर्वजों द्वारा अपनाई गई 10 ऐसी आदतें जो स्वास्थ्य को रखती हैं ठीक। 10 habits of our ancestors that can keep us healthy.


क्या आपने सोचा है की हमारे पूर्वजों की सेहत व उनकी कद काठी हमारे से अच्छी व मजबूत क्यों थी आज हम अनेक रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं तथा हमारी प्रतिरोधक क्षमता दिन प्रतिदिन कम हो रही है नए-नए रोग आसानी से हमारे शरीर को रोगी बना रहे हैं। हमारा स्वस्थ दो बातों पर निर्भर करता है एक हमारा वातावरण तथा दूसरा जो खाद्य पदार्थ जो हम ग्रहण करते हैं। यह दोनों ही आजकल दूषित हैं पहले यह दोनों शुद्ध थे। मैं आपको 10 ऐसे कारण बताने जा रहा हूं जिनकी वजह से हमारे पूर्वजों की सेहत अच्छी थी तथा उनमें बदलाव आने से हमारी सेहत खराब हो गई।
(1) अनाज और फल सब्जियों में रासायनिक खाद और रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता था :---
पैदावार बढ़ाने केे चक्कर में अप्राकृतिक रूप से रासायनिक खादों(chemical fertilizers) व कीटनाशकोंं(pesticides) का निर्माण शुरू हुआ। पैदावार बढ़ाना बुरी बात नहीं है लेकिन यदि पैदावार बढ़ने के साथ-साथ हमाारे शरीर में जहर की मात्रा भी बढ़ती जाए तो यह कहांं तक न्याय संगत है, एक पुरानी कहावत है
"ऐसे सोने के आभूषण का क्या फायदा जो कानों को खराब कर दे" पैदावार बढ़ाने की प्राकृतिक रूप से कोई व्यवस्था होनी चाहिए जिसका कोई विपरीत प्रभाव ना पड़े जैसे कि गोबर की खाद या जैविक खाद। इनका प्रयोग तो कई जागरूक किसान अब करने लगे हैं लेकिन विभिन्न प्रकार के किड़ों से फसलों को बचाने के लिए प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए कीटनाशक उपलब्ध नहीं हैं इस पर शोध करने की अत्यंत आवश्यकता है। किसानों को पता होते हुए भी उनकी मजबूरी है कि वह इन रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करें क्योंकि यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी फसल नष्ट हो जाती है।इन रासायनिक खादों व रासायनिक कीटनाशकों के विपरीत  प्रभाव का मैं एक उदाहरण आपको देता हूं आजकल गेहूं खाने से होने वाली एलर्जी के रोगी दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं यदि उनको बाजरा खिलाया जाए तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती इसका सीधा कारण है की गेहूं में रासायनिक खादों व रसायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है तथा बाजरे की फसल के लिए इनका प्रयोग नहीं किया जाता।
आजकल तो अनाज को सुरक्षित रखने के लिए भी सल्फास जैसे खतरनाक रसायनों का प्रयोग किया जाता है। पहले अनाजों को संरक्षित करने के लिए नीम के पत्तों  या बालू मिट्टी का प्रयोग किया जाता था जिसका शरीर पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता था।

(2) अनुवांशिक रूप से संशोधित बीजों का प्रयोग:--GMO यानी के genetically modified seeds 

इन बीजों को लैब में तैयार किया जाता हैं इनको तैयार करने के लिए glyphosate pesticide का प्रयोग किया जाता है जिसके अनेक प्रकार के विपरित प्रभाव (side effects) है जैसे कि स्किन एलर्जी, नजला (allergic Rhinitis) पेट खराब होना और कैंसर आदि।
(3)रात को आसानी से पचने वाला भोजन करते थे:--आयुर्वेद के अनुसार रात को देर से पचने वाला भारी भोजन नहीं लेना चाहिए क्योंकि रात को हमारा शरीर आराम अवस्था में होता है इसलिए हमारी पाचन क्रिया मंद रहती है। रात को सूर्य का प्रभाव कम तथा चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है, स्वर चिकित्सा में भी यह बताया गया है की चंद्र नाड़ी हमारे शरीर में शीतलता प्रदान करती है और सूर्य नाड़ी उष्णता प्रदान करती है इस उष्णता से जठराग्नि प्रबल होती है तथा चंद्र नाड़ी चलने से जठराग्नि मंद होती है इसलिए रात्रि को जठराग्नि मंद होने से भारी भोजन देर से पचता है। हमारे पुर्वज इस बात से भलीभांति परिचित थे इसलिए लगभग प्रत्येक घर में रात्रि के खानें मैं दलिया या खिचड़ी का प्रयोग किया जाता था जो पचने में आसान होती हैं।

(4) मीठे के रूप में चीनी(white sugar) का प्रयोग नहीं करते थे:---
चीनी के उत्पादन से पहले मीठे के रूप में गुड़ शक्कर और देसी खांड का प्रयोग किया जाता था जिसके कोई विपरीत प्रभाव नहीं होते थे आजकल चीनी का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है इस सफेद चीनी को बनाने में सल्फर डाइऑक्साइड(sulphur dioxide) और फास्फोरिक एसिड(phosphoric acid) का प्रयोग किया जाता है जिससे हमारे शरीर पर कई प्रकार के विपरीत प्रभाव होते हैं जैसे गुर्दे की बीमारी(kidneydiseas)मधुमेह(diabetes)मोटापा(obesity)आदि ।चीनी का अधिक प्रयोग हमारे शरीर को अम्लीय (acidic)कर देता है और हमारे क्षार (alkaline) को कम कर देता है इससे कैंसर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है ।

(5)मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग ज्यादा किया जाता था:---
मिट्टी के बर्तन में कोई भी पदार्थ डाला जाए तो उसके साथ कोई रासायनिक प्रतिक्रिया (chemical reaction) नहीं होती जबकि धातू के बर्तनों में ऐसा होता है। ज्यादातर धातुएं  हमारे भोजन में घुल जाती हैं जो हमारे शरीर में पहुंचकर  जहर का काम करती हैं जिसे अंग्रेजी में metal toxicity कहते हैं।

(6) तले हुए भोजन (fried food)का प्रयोग नहीं किया जाता था:---पहले लोगों का जीवन सादगी पूर्ण होता था तथा उनका रहन सहन व खानपान दोनों ही सादे होते थे। भोजन फ्राई करते समय तेल को काफी अधिक गर्म किया जाता है जिससे हाइड्रोजन गैस(hydrogen gas) रिलीज होती है जिसे hydrogenation कहते हैं। तले हुए  पदार्थों के खाने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं जैसे कि रक्त में कोलेस्ट्रॉल(cholesterol) की मात्रा बढ़ जाना, रक्त में जो HDL cholesterol  जिसको  good cholesterol भी कहा जाता है कम हो जाता है तथा LDL और triglyceride बढ़ जाते हैं जिसके फलस्वरूप शरीर में फैट की मात्रा बढ़ने लगती है और मोटापा, हृदय रोग आदि कई प्रकार की बीमारियां शरीर में लगने का खतरा रहता है। आज भी मुझे याद है जब मेरी दादी सब्जी बनाती थी तब वह उसको कभी तेल में तलती(fry) नहीं थी वह एक बर्तन में सब्जी को उबाल लेती थी तथा आग के चूल्हे से एक आग के अंगारे को लेकर  उस पर थोड़ा मक्खन डालती थी ऐसा करने से उसमें धुआ निकलता था और एक दूसरे बर्तन को लेकर उस अंगारे पर  उस बर्तन को ओंधा मार देती थी 1 मिनट बाद उस बर्तन को सीधा करके उबली हुई सब्जी उसमें डाल देती थी इससे सारी खुशबू उस सब्जी में मिल जाती थी और वह सब्जी फ्राई होने से भी बच जाती थी आज भी उस सब्जी का स्वाद मुझे याद है जो फ्राई की हुई सब्जी में कभी नहीं आता लेकिन आज जनसंख्या वृद्धि के कारण चुल्हे में जलाने के लिए लकड़ियों की काफी कमी हो गई है। शहरी क्षेत्रों में तो आग वाले चूल्हे का प्रयोग किया ही नहीं जाता सभी लोग गैस वाले चूल्हे का प्रयोग करते हैं जिससे पुराने तरीके से सब्जी व रोटी बनाना संभव नहीं है।

(7)सूती वस्त्रों का प्रयोग करते थे:---ज्यादातर खादी से बने हुए या हाथ से बने कपड़ों का प्रयोग किया जाता था इन कपड़ों के पहनने से किसी प्रकार की स्किन एलर्जी नहीं होती थी तथा वह पहनने में मुलायम भी होते थे इन सूती कपड़ों को तैयार करने में इसी प्रकार के सिंथेटिक पदार्थ (synthetic element)का प्रयोग नहीं होता था। गर्मी के दिनों में यह सूती कपड़े पसीना आसानी से सोख लेते थे। आजकल ज्यादातर कपड़ों में पॉलिएस्टर फाइबर(polyester fibre) का प्रयोग किया जाता है जो एक प्रकार का प्लास्टिक है प्लास्टिक के दुष्प्रभाव का तो हम सबको पता ही है सरकार भी इसको बंद करने के लिए कवायद कर रही है लेकिन आजकल यह इतनी चीजों में प्रयोग होने लगा है की बहुत सी चीजों के बारे में तो आम आदमी को पता ही नहीं है।

(8)साबुन और शैंपू का प्रयोग नहीं करते थे:---पहले लोगों का खानपान सादा होता था जिससे शरीर में अधिक विजातीय पदार्थ (West products)कम बनते थे इसलिए शरीर को इन विजातीय पदार्थ के निकालने की आवश्यकता कम होती थी फलस्वरूप शरीर पर मैल कम जमता था तथा कपड़े भी जल्दी मैले नहीं होते थे। शरीर की शुद्धि के लिए नहाते समय मुल्तानी मिट्टी या गीले कपड़े के द्वारा शरीर को रगड़ कर साफ किया जाता है शैंपू के स्थान पर मुल्तानी मिट्टी नींबू याद दही का उपयोग किया जाता था आजकल हम साबुन डिटर्जेंट शैंपू फ्लोर क्लीनर कॉस्मेटिक्स आदि का प्रयोग अधिक मात्रा में करने लगे हैं जिनमें (sodium laureth) सोडियम लोरेथ पाया जाता है जो हमारे लीवर गुर्दे फेफड़े और पेनक्रियाज में काफी नुकसान पहुंचाता है।

(9) टूथपेस्ट व माउथ वास की जगह दातुन व प्राकृतिक जड़ी बूटियों से बने हुए मंजन का प्रयोग किया जाता था:---
आजकल प्रयोग होने वाले टूथपेस्ट और माउथ वास में सोडियम क्लोराइड(sodium chloride) तथा लॉरेल सल्फेट(lauryl sulphate) अधिक मात्रा में पाया जाता है जिसका हमारे दांतो हमारे दिमाग और गुर्दे पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है।

(10) तेज रोशनी वाली फ्लैशलाइट व भयंकर आवाज वाले डीजे साउंड तथा लाउडस्पीकर नहीं होते थे:---
आजकल मोटर गाड़ियों तथा बड़े-बड़े मनोरंजन के लिए किए जाने वाले उत्सवों(functions) में तथा विवाह शादी के उत्सवों में तेज फ्लैश लाइटों(powerful flashlights)का प्रयोग होता है जिनका हमारे शरीर पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ता है आज हम देखते हैं कि हमारी आंखों की नजर हमारे पूर्वजों के मुकाबले काफी जल्दी कमजोर हो जाती है तथा मोतियाबिंद पहले के मुकाबले काफी कम उम्र में उतर आता है, आंखों के अलावा इन तेज लाइटों से दिमागी दौरे और मिर्गी जैसे रोग उत्पन्न होने का खतरा रहता है। विवाह शादी में बजाये जाने वाले डीजे साउंड (DJ sound)की आवाज इतनी तेज होती है कि यदि इसके बिल्कुल पास कुछ देर तक खड़े रहें तो कान का पर्दा भी फट सकता है। इससे उत्पन्न होने वाले तेज कंपन से हृदय रोगियों को ह्रदय घात(heart attack) होने का खतरा बढ़ जाता है। पशुओं पर भी इस कंपनी का काफी गलत प्रभाव पड़ता है विशेषकर दूध देनेे वाले पशुओं पर।  अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि यदि हमेंं स्वस्थ रहना है तो हमें भूल सुधार कर लेनी चाहिए और हमारे पूर्वजों की अच्छी आदतों को फिर से जीवन में लागू कर लेना चाहिए । एक कहावत है की "हमारे पूर्वजों से जो मिला है उसे और बढ़ाएं यदि बढ़ा नहीं सकते तो कम से कम घटाएं तो नहीं"।     
                        नमस्कार




Comments

Popular posts from this blog

अनार का पौधा लगाने से आएगी आपके घर में सुख समृद्धि।

यदि आपके  घर की चारदीवारी के अंदर की तरफ आग्नेय कोण में थोड़ी खाली जगह है तो आप अनार का पौधा अवश्य लगाएं यह पौधा आकार में बहुत बड़ा नहीं होता इसलिए अधिक स्थान भी नहीं घेरता है अब आपके दिमाग में यह सवाल आएगा कि इसके पीछे ऐसी क्या खास बात है। आजकल वास्तु के महत्व को लगभग सभी लोग मानने लगे हैं यदि  अनजाने में आपके घर में आपने कोई फलदार पौधा वास्तु के विपरीत लगा रखा है और आपको इस बात का पता लग जाता है तो आप उसको तुरंत उखाड़ कर फेंक देंगें चाहे वह कितना ही लाभकारी क्यों ना हो। इसलिए यह ध्यान देना जरूरी है की अनार के पौधे को घर में किस दिशा में लगाया जाए। वास्तु शास्त्र के अनुसार आग्नेय  कोण अनार के पौधे के लिए सही स्थान है यदि आप अग्नि कोण में इस पौधे को लगाएंगे तो यह आपके लिए अत्यंत सुखदाई व शुभ कारक साबित होगा तथा इससे आपके ग्रह दोष दूर होंगे। ऐसा माना जाता है कि अनार के पौधे में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों निवास करते हैं, अनार के फूलों को शहद में डुबोकर सोमवार को शिवलिंग पर चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं । पुराने जमाने में अनार की टहनी से बनाई गई ...

Ayurvedic Remedies for Fatty Liver: Natural Detox for a Healthy Liver

Fatty liver disease is becoming increasingly common due to poor diet, sedentary lifestyles, and high stress levels. While modern medicine offers solutions, Ayurveda provides natural and effective remedies to detox the liver and restore its health. Let’s explore some powerful Ayurvedic treatments to combat fatty liver naturally. 1. Start Your Day with Warm Turmeric Water Turmeric is known for its powerful anti-inflammatory and detoxifying properties. Drinking warm water with a pinch of turmeric every morning helps flush out toxins and supports liver function. 2. Consume Aloe Vera Juice Aloe vera is a natural detoxifier that helps cleanse the liver and improve digestion. Drinking fresh aloe vera juice on an empty stomach can reduce liver fat and enhance overall health. 3. Use Ayurvedic Herbs for Liver Detox - Bhumyamalaki: Known for its hepatoprotective properties, it helps regenerate liver cells. - Kalmegh (Andrographis Paniculata): A powerful bitter herb that improves liver...

Ranveer Allahbadia Controversy: Why People Are Criticizing Him?

Ranveer Allahbadia, widely recognized as "BeerBiceps," has established himself as a prominent figure in India's digital content landscape. With a substantial following across platforms like YouTube and Instagram, he is celebrated for his motivational content, fitness advice, and insightful podcasts. However, recent events have thrust him into the center of a significant controversy, sparking widespread debate and criticism. The Controversial Incident The controversy erupted during an episode of the comedy reality show India's Got Latent , where Allahbadia served as a panelist alongside social media influencer Apoorva Makhija, comedian Samay Raina, and content creator Ashish Chanchlani. In this particular episode, Allahbadia posed an offensive and inappropriate question to a contestant: > "Would you rather watch your parents have sex every day for the rest of your life or join in once and stop it forever?" This remark, deemed vulgar and insensi...