पहला बदलाव:--- पुराने जमाने में जब बिजली की खोज नहीं हुई थी तब घी या सरसों के तेल से दीपक जलाते थे लेकिन आजकल नई टेक्नोलॉजी के चलते अनेक प्रकार की बिजली से जलने वाली लड़ियों का प्रयोग किया जाता है जो कि कीमत में ज्यादा महंगी है तथा बिजली भी ज्यादा खर्च होती है और इनका प्रकाश दीपक के प्रकाश के मुकाबले आंखों को नुकसान पहुंचाता है! हां पिछले साल से इनमें कुछ कमी आई है क्योंकि ज्यादातर ये चाइना की बनी हुई बाजार में मिलती हैं लेकिन भारत और चीन के तनाव के मद्देनजर काफी लोगों ने इनकी बजाए तेल के दीयों का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
दूसरा बदलाव :--पहले दीपावली के पर्व पर घर पर ही शुद्ध देसी घी से मिष्ठान तैयार होते थे उस में मुख्य रूप से हलवा और खीर बनाई जाती है क्योंकि पहले प्रत्येक घर में गाय आदि दुधारू पशु रखते थे इसलिए दूध की कमी नहीं थी आजकल यदि दुधारू पशु रखते भी हैं तो इनके रखने का उद्देश्य दूध बेचने के लिए ज्यादा होता है! आजकल बाजार में बनी मिठाइयों का प्रचलन है जिनमें काफी प्रकार की मिलावट पाई जाती है अनेक तरह के रंग मिला देते हैं नकली मावा तैयार होने लगा है जो सेहत की दृष्टि से अत्यंत नुकसानदेह है लेकिन यह एक परंपरा बन गई है।
आजकल एक प्रथा जो बिल्कुल समाप्त हो चुकी है :--पहले बच्चे कई दिन पहले से ही मोर के पंखों को इकट्ठा करना शुरू कर देते थे और दीपावली से पहले घर में पुराने कपड़ों के अलग-अलग रंग के टुकड़ों से फूल जैसे गुच्छे बनाकर मोर पंखों से मालाएं तैयार करते थे और इन मालाओं को दीपावली के दिन पशुओं के गले में पहनाते थे और गेेेेरु जो एक प्रकार की मिट्टी होती है जिस का रंग लगभग लाल होता है उसको पानी में घोलकर मिट्टी के दीपक से पशुओं के पीठ पर गोल गोल डिजाइन बना देते थे इससे पशुओं की सुंदरता बहुत अधिक दिखाई देती थी और बच्चों के लिए यह अत्यधिक खुशी की बात थी आजकल पशुओं को केवल दूध के स्वार्थ के लिए ही रखते हैं लेकिन उस समय ऐसा लगता था जैसे यह हमारे परिवार के सदस्य हों।
यह सही बात है किस समय के साथ बदलाव होता है लेकिन यदि बदलाव नुकसान करने वाला हो तो इस पर विचार करना चाहिए तथा हमारी प्राचीन परंपराओं जो हमारी धरोहर हैं जिनमें बहुत ज्यादा खूबियां हैं जिनके कोई विपरीत प्रभाव नहीं पाए जाते और हमारी सेहत पर भी कोई खराब असर नहीं पड़ता ऐसी परंपराओं को बनाए रखने में हमें संकोच नहीं करना चाहिए बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि इन परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए हमें मिलकर प्रयास भी करने चाहिए।
नमस्कार 🙏
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