प्रकृति आदि भावों के भिन्न होते हुए भी मनुष्य के अन्य सामान्य भाव यथा- वायु, जल, देश एवं काल के विकृत होने पर एक ही समय में एक समान लक्षणों वाले रोग उत्पन्न होकर जनसमूह को नष्ट कर देते हैं इस प्रकार के रोग संक्रामक रोग कहलाते हैं। प्राचीन समय में युद्ध के समय खाद्य पदार्थ में विष प्रयोग तथा विषैली गैस, चूर्ण, तेल आदि के छिड़काव द्वारा वायु एवं भूमंडल को दूषित कर के सामूहिक नरसंहार किया जाता था। वर्तमान समय में भी प्रयुक्त कार्बन मोनो ऑक्साइड(cabon mono oxide) क्लोरोफ्लोरोकार्बन(CFC) और क्लोरीन (chlorine) मिथाइल आइसोसायनाइड(MIC) आदि जहरीली गैसों का प्रयोग भी विनाशकारी होता है ।बहुत सी व्याधियां यथा- विसूचिका ,अतिसार, आंतरिक ज्वर , कुष्ठ रोग ,ज्वर, प्लेग, डेंगू , राज्ययक्ष्मा, डिप्थीरिया, SARS,धनुर्वात आदि में जीवाणुओं के त्वचा या अन्य माध्यमों से शरीर में संक्रमण होने पर विभिन्न अवयवों की व्याधियों उत्पन्न हो सकती हैं एवं बहुत ही तीव्रता से संक्रामक रोगों के रूप में जनसामान्य में फैल सकती हैं।
संक्रामक रोगों की चिकित्सा में निम्न दो तरह के उपाय किए जाते हैं -
१.अनागतबाधा प्रतिसेध या प्रतिसेधात्मक चिकित्सा (Prophylactic treatment)
२.आवस्थिक चिकित्सा (symptomatic treatment)
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