कुछ वर्ष पहले तक ऐसा लगने लगा था कि आयुर्वेद अपना मूल खोने लगा है । दिन प्रतिदिन आयुर्वेद का रुझान कम होता जा रहा था ।आयुर्वेद के मर्मज्ञ विद्वानों की देश में कमी होती जा रही थी, जो कुछ बचे थे वह भी बेबस नजर आ रहे थे, वह अपनी बात अच्छी तरह रख भी नहीं पा रहे थे। आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति ही नहीं वरन् एक संपूर्ण जीवन दर्शन है अब प्रश्न यह उठता है के आयुर्वेद के साथ ऐसा क्यों हुआ। मैं आपको एक उदाहरण के साथ समझा रहा हूं - जैसे आप घर में दो पौधे लगाएं एक में समय पर खाद पानी दे और दूसरे में कभी कभार पानी दें और खाद का भी ध्यान ना रखें तो सीधी सी बात है जिस पौधे का ज्यादा ध्यान रखा गया वह बड़ा होता गया लेकिन जिसको देखा कम ध्यान रखा गया वह छोटा ही रह गया अभी ये समय का फेर कहिए या विदेशी शासकों का हमारे देश में लंबे समय तक राज करना इसका कारण रहा हो जिन्होंने अपनी चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा दिया और हमारे आयुर्वेद की हालत इस प्रकार हो गई जैसे कुपोषण के शिकार की होती है । मौजूदा मोदी सरकार ने अब आयुर्वेद पुनर्जीवित करने का जो संकल्प लिया है इससे कुछ आस जगी है और सरकार के प्रयास से ऐसा लगने भी लगा की आयुर्वेद के दिन सुधरेंगे।
सभी चिकित्सा पद्धतियों में कुछ विशेषताएं हैं तो कुछ कमियां भी हो सकती हैं लेकिन हमारे देश में एक ऐसी भावना अब काम कर रही है जो समृद्ध व स्थापित हैं यदि दूसरा कोई उनसे विपरित विचारधारा वाला उन्नति करें यह उनको नागवार लगता है , नफरत की भावना रखते हैं और कई बार तो उस नफरत का प्रदर्शन भी कर देते हैं ऐसी विचारधारा देश और समाज के लिए हानिकारक है। हमें भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम भी किसी की व्यर्थ की आलोचना करके अपना विवेक अपना सामर्थ्य अपना समय व्यर्थ ना गवाएं यह , अपना कीमती समय आयुर्वेद के लिए दें।
जितने भी आयुर्वेद के विद्वान, आयुर्वेद के शिक्षक, आयुर्वेद के छात्र छात्राएं इन सब से मेरी विनती है कि व्यर्थ के वाद विवाद में न उलझते हुए आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने के लिए समझदारी से हृदय से सतत प्रयास में लग जाएं क्योंकि आयुर्वेद और अन्य हमारे सांस्कृतिक धरोहर ओर विशेषताएं यह किसी भी कीमत पर नष्ट नहीं होनी चाहिए क्योंकि जड़ नहीं तो तना और पत्ते फल यह कहां रहेगें ।
आज सबसे पहले हमें आयुर्वेद के लिए क्या करना चाहिए
(१) आज आयुर्वेद के छात्रों को बीएएमएस की उपाधि प्रदान की जाती है जिसका अर्थ है बैचलर आफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी। इसमें सर्जरी ना के बराबर सिखाई जाती है आयुर्वेदाचार्य शब्द तो अब जैसे लुप्तप्राय हो गया है। बीएएमएस के साथ -साथ ऐसी उपाधि की व्यवस्था भी करनी चाहिए जिसमे संपूर्ण आयुर्वेद की शिक्षा प्रदान की जाए तथा जिसका नाम भी अंग्रेजी की बजाए हिंदी संस्कृत या भारत की अन्य समृद्ध भाषाओं में हो। आज आयुर्वेद के छात्र से पूछा जाए की शिक्षा पूर्ण करने के बाद आप क्या करेंगे तो उनमें से ज्यादातर का उत्तर यही आएगा कि हम अपना चिकित्सालय खोलेंगे या सरकारी नौकरी मिल जाएगी तो अच्छा है खूब पैसे कमाएंगे लेकिन ऐसी भावना गिने चुने छात्रों की ही मिलेगी जो यह कहें कि हम शिक्षा पूर्ण करने के बाद आयुर्वेद के उत्थान के लिए कार्य करेंगे, आज के भौतिक युग में पैसे की जरूरत काफी बढ़ गई है जिसमें पर दो राय नहीं है क्योंकि घर चलाने के लिए रुपयों की जरूरत पड़ती है एक पुरानी कहावत मुझे याद आ रही है "साधु संग्रह करें वह साधु नहीं तथा गृहस्थी संग्रह ना करें वह गृहस्थी नहीं"लेकिन क्या अपने अस्तित्व को खतरे में डालकर आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा करना सही है हमें आयुर्वेद के शिक्षण संस्थानों में विशेष रुप से सप्ताह या 15 दिन में छात्रों को यह बात जरूर समरण करवानी चाहिए की आजीविका के साथ-साथ हमें यह भी प्रयास करने चाहिए इस प्रकार का योगदान भी देना चाहिए जिससे आयुर्वेद को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद मिले।
नमस्कार 🙏

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